Friday, 24 April 2020

रमजान की अहमियत

रमजान की आप सभी को पुरखुलूस मुबारकबाद



 रमजान का महीना हर मुसलमान के लिए बहुत अजीज होता है, जिसमें 30 दिनों तक रोजे रखे जाते हैं. इस्लाम के मुताबिक, पूरे रमजान को तीन हिस्सों में बांटा गया है, जो पहला, दूसरा और तीसरा अशरा कहलाता है. अशरा अरबी का 10 नंबर होता है. इस तरह रमजान के पहले 10 दिन (1-10) में पहला अशरा, दूसरे 10 दिन (11-20) में दूसरा अशरा और तीसरे दिन (21-30) में तीसरा अशरा बंटा होता है.

इस तरह रमजान के महीने में 3 अशरे होते हैं. पहला अशरा रहमत का होता है, दूसरा अशरा मगफिरत यानी गुनाहों की माफी का होता है और तीसरा अशरा जहन्नम (Hell) की आग से खुद को बचाने के लिए होता है. रमजान के महीने को लेकर पैगंबर मोहम्मद ने कहा है, रमजान की शुरुआत में रहमत है, बीच में मगफिरत यानी माफी है और इसके अंत में जहन्नम  (Hell) की आग से बचाव है.

रमजान के शुरुआती 10 दिनों में रोजा-नमाज करने वालों पर अल्लाह की रहमत होती है. रमजान के बीच यानी दूसरे अशरे में मुसलमान अपने गुनाहों से पाक हो सकते हैं. वहीं, रमजान के आखिरी यानी तीसरे अशरे में जहन्नम की आग से खुद को बचा सकते हैं.

रमजान के 3 अशरे और उसकी अहमियत
1. रमजान का पहला अशरा (First Stage of Ramadan- 'Mercy')-


रमजान महीने के पहले 10 दिन रहमत के होते हैं. रोजा नमाज करने वालों पर अल्लाह की रहमत होती है. रमजान के पहले अशरे में मुसलमानों को ज्यादा से ज्यादा दान कर के गरीबों की मदद करनी चाहिए, लॉक डाउन में तो मदद जरूर करे . हर एक इंसान से प्यार और नरमी इख़्तियार करके इंसानियत की मिसाल पेश करनी चाहिए |

2. रमजान का दूसरा अशरा (Second Stage of Ramadan- 'Forgiveness')-

रमजान के 11वें रोजे से 20वें रोजे तक दूसरा अशरा चलता है. यह अशरा माफी का होता है. इस अशरे में लोग इबादत कर के अपने गुनाहों से तोबा करते और और अल्लाह से माफी पा सकते हैं. इस्लाम के मुताबिक, अगर कोई इंसान रमजान के दूसरे अशरे में अपने गुनाहों से माफी मांगता है,और आइंदा गुनाह न करे इसका इरादा करता है  तो दूसरे दिनों के मुकाबले इस समय अल्लाह अपने बंदों को जल्दी माफ करता है.

3। रमजान का तीसरा अशरा (Third Stage of Ramadan 'Nijat')-

रमजान का तीसरा और आखिरी अशरा 21वें रोजे से शुरू होकर चांद के हिसाब से 29वें या 30वें रोजे तक चलता है। ये अशरा सबसे अहम्  माना जाता है। तीसरे अशरे का मकसद जहन्नम (Hell) की आग से खुद को बचाये रखना है। इस दौरान हर मुसलमान को जहन्नम से बचने के लिए अल्लाह से दुआ करनी चाहिए। रमजान के आखिरी अशरे में कई मुस्लिम मर्द और औरतें एहतकाफ में बैठते हैं। बता दें, एहतकाफ में मुस्लिम पुरुष मस्जिद के कोने में  10 दिनों तक एक जगह बैठकर अल्लाह की इबादत करते हैं, जबकि महिलाएं घर में रहकर ही इबादत करती हैं।।